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Showing posts from March, 2023

इंटरकास्ट मैरिज के कुछ कॉम्बिनेशन

ओम शान्ति      इंटरकास्ट मैरिज के कुछ कॉम्बिनेशन  1- राहु का 7 हाउस में  या 7 हाउस के स्वामी से संबंध।  2- राहु लग्नेश  के नक्षत्र में  3- राहु 1/5/9 भाव में।  4- मंगल और शुक्र 12 भाव मे  5- शुक्र और राहु काम भाव (3/7/11) भाव में।  6- शुक्र-राहु की युति 6 भाव में   7- शुक्र से मंगल त्रिकोण में।  8- चंद्र और मंगल एक दूसरे से 6/8।  9- पुरुष कुण्डली में शुक्र पाप ग्रह से पीड़ित हो तो अंतर्जातीय विवाह करता है, लेकिन यह 9 हाउस में नहीं होना चाहिए।  10- स्त्री कुण्डली में बृहस्पति यदि शनि/राहु/केतु से पीड़ित हो तो अंतर्जातीय विवाह भी कर सकता है।  11- मंगल शुक्र एक दूसरे से 2/12 हो तो अंतर्जातीय विवाह कर सकता है।  ( इसमे अगर यह 9 हाउस की involment हो और गुरु दोनों मे से किसी के साथ हो ऐसा न होगा   12- जब शनि 5 हाउस में स्थित हो और 7 House पर दृष्टि डाले तो संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।  यदि इसी समय 7 7 का स्वामी भी शनि से प्रभावित हो तो निश्चित है।  13- जब 9 हाउस का स्वामी  6/8/12 भाव में हो और 9 में शनि/राहु/केतु से पीड़ित हो तो अंतर्जातीय विवाह की संभावना होती है।  14- पंचम, सप्तम और नवमेश की संग

तीन ग्रहो की युति का आपके ऊपर प्रभाव

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀 वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में तीन  ग्रहो की युति का आपके ऊपर प्रभाव ☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️☘️ सूर्य-चंद्र-मंगल की युति फल सूर्य, चंद्र एवं बुध की युति फल जन्म पत्रिका में हो तो जातक तेजस्वी, विद्वान, शास्त्रप्रेमी, राजमान्य, भाग्यशाली एवं नीतिविशारद होता है।   सूर्य-चंद्र-शुक्र की युति फल सूर्य, चंद्र एवं शुक्र की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक हीनवीर्य, व्यापारी, सुखी, निसंतान या अल्पसंतान, लोभी एवं साधारण धनी होता है।   सूर्य-चंद्र-शनि की युति फल  सूर्य, चंद्र एवं शनि की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक अज्ञानी, धूर्त, वाचाल पाखंडी, अविवेकी, चंचल एवं अविश्वासी होता है।     सूर्य-मंगल-गुरू की युति फल सूर्य, मंगल एवं गुरू की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक राजमान्य, सत्यवादी, तेजस्वी, धनिक, प्रभावशाली एवं ईमानदार होता है।   सूर्य-मंगल-शुक्र की युति फल सूर्य, मंगल एवं शुक्र की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक कुलीन, कठोर, वैभवशाली, नेत्ररोगी एवं प्रवीण होता है।   सूर्य-मंगल-शनि की युति फल सूर्य, मंगल एवं शनि की युति जन्म पत्रिका में हो तो जातक

पीपल से जुड़े कुछ विशेष ज्योतिषीय उपाय

पीपल से जुड़े कुछ विशेष ज्योतिषीय उपाय • जीवन में चाहे कैसा भी पितृ दोष हो, अगर आप रोज पीपल के पेड़ पर सूर्योदय काल में जल अर्पित करते है तो हर प्रकार का पितृ दोष समाप्त हो जाता है, बशर्ते आप नियमित ऐसा करें। • अगर आपका शुक्र ग्रह खराब है और शुक्र की वजह से संतान सुख भी नहीं मिल पा रहा है तो आप पीपल पर लगने वाला फल खाएं, ये फल आप किसी भी प्रकार से आप खा सकते है,चाहे सब्जी या चटनी के रूप में, अगर आप ऐसा करते है तो आपका शुक्र प्रबल हो जायेगा, और आप शारीरिक रूप से मजबूत हो जायेंगे।   • शनि शांति के लिए - अगर आपका शनि खराब है शनि की महादशा, अंतर्दशा,गोचर या साढ़े साती कुछ भीं है, जिससे आप शनि की पीढ़ा झेल रहे है तो आप रोज पीपल के पत्ते को जल में डालकर स्नान करें, इससे शनि की पीढ़ा शांत होगी। • राहु केतु अगर खराब हों ,घर में शांति नहीं रहती, घर में मन खराब होता है, लड़ाई झगड़े तो जैसे सामान्य हो जाते है, इसके लिए शाम के समय सूखे पीपल के पत्तो और पीपल की लकड़ी को घर में जला कर इसका धुआं घर में देने से हर प्रकार के कलेश दूर हो जाते है, फिर वजह चाहे कुछ भी हो। • सूर्य, गुरु,बुध और शुक्र ग्रह क

gomti चक्र

गोमती चक्र : कुछ विशेष उपाए : - १. दुश्मन तंग कर रहे हों तो तीन गोमती चक्रों पर दुश्मन के नाम लिख कर जमीन में गाड दें . दुश्मन परास्त हो जाएंगे. २. व्योपार बदने के लिए दो गोमती चक्र लाल कपडे में बाँध कर चौखट पे इस तरह से लटका दें कि ग्राहक उसके नीचे से गुजरें , इस से ग्राहक ज्यादा आयेंगे. ३. सरकार की तरफ से सम्मान  हासिल करने के लिए और अटके काम पूरे करने के लिए दो गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान कर दें. ४. बार बार गर्भपात हो रह हो तो दो गोमती चक्र लाल कपडे में बाँध कर कमर से बाँध दें. ५. यदि प्रमोशन नही हो रही तो एक गोमती चक्र शिव मन्दिर में चढ़ा दें. ६. दुर्भाग्य दूर करने के लिए तीन गोमती चक्रों का चूर्ण बनाकर घर के आगे बिखेर दें . ७.पुत्र प्राप्ति के लिए पांच गोमती चक्र लेकर किसी तालाब या नदी में प्रवाह करें, मन्त्र पढ़ते हुए - हिली हिली मिलि मिलि चिली चिली हुक ८. पति पत्नी का झगडा ख़तम करने के लिए तीन गोमती चक्र हलूं बलजाद कह्कर घर के दक्षिण में फेंकें . ## विशेष  ## गोमती चक्र को अभिमंत्रित अवश्य करे । ##  गोमती चक्र को अभिमंत्रित करने के लिए, सुबह स्नानादि के बाद, गोमती चक्र को भल

108 ॥ #का_रहस्य*

*॥ 108 ॥ #का_रहस्य* ॥ॐ॥ का जप करते समय 108 प्रकार की विशेष भेदक ध्वनी तरंगे उत्पन्न होती है जो किसी भी प्रकार के शारीरिक व मानसिक घातक रोगों के कारण का समूल विनाश व शारीरिक व मानसिक विकास का मूल कारण है। बौद्धिक विकास व स्मरण शक्ति के विकास में अत्यन्त प्रबल कारण है ।  ॥ 108 ॥ यह अद्भुत व चमत्कारी अंक बहुत समय ( काल ) से हमारे ऋषि -मुनियों के नाम के साथ प्रयोग होता रहा है।   *★ आइये जाने संख्या 108 का रहस्य ★* *स्वरमाला* अ→1 ... आ→2... इ→3 ... ई→4 ... उ→5... ऊ→6  ... ए→7 ... ऐ→8 ओ→9 ... औ→10 ... ऋ→11 ... लृ→12 अं→13 ... अ:→14..  ऋॄ →15.. लॄ →16 *व्यंजनमाला* क→1 ... ख→2 ... ग→3 ... घ→4 ... ङ→5 ... च→6... छ→7 ... ज→8 ... झ→9... ञ→10 ... ट→11 ... ठ→12 ... ड→13 ... ढ→14 ... ण→१15 ... त→16 ... थ→17... द→18 ... ध→19 ... न→20 ... प→21 ... फ→22 ... ब→23 ... भ→24 ... म→25 ... य→26 ... र→27 ... ल→28 ... व→29 ... श→30 ... ष→31 ... स→32 ... ह→33 ... क्ष→34 ... त्र→35 ... ज्ञ→36 ... ड़ 37   ... ढ़ ... 38 --~~~ओ अहं = ब्रह्म ~~~-- ब्रह्म = ब+र+ह+म =23+27+33+25=108 *( 1 )*  यह मात्रिकाएँ (16स्वर +38

मोती की माला के फायदे ?

मोती की माला के फायदे ? • मोती माला धारण करने से परिवार में सम्बंध मजबूत रहते है। ब्लड प्रेशर, हृदय, एवं आंखों से संबंधित बीमार जातक को यह माला पहनना बहुत ही लाभकारी है। • मोती की माला मानसिक रोग और शांति के लिए यह माला बहुत ही लाभकारी है। • मोती की माला को पहनने से पेट सम्बंधित कोई समस्या नहीं होती है, मन शांत रहता है, छोटी-छोटी बातों पर क्रोध नही आता, प्रत्येक कार्य में सफलता मिलती है। • मोती की माला को धारण करने से माँ से ज्यादा बनने लगती है, माँ से धन लाभ के योग बनने लगते है। • मोती की माला को धारण करने से मस्तिष्क मजबूत होता है, यादाश बढ़ने लगती है। • मोती की माला को धारण करने से शरीर के हार्मोनस में सन्तुलन बना रहता है। • आर्ट्स वाले विद्यार्थी के लिए मोती माला बहुत ही लाभकारी है। • जो व्यक्ति पानी, कोल्डड्रिंक, जूस, मछली पालन, पशु पालन, यात्रायें, बाहरी देशों से लेने-देन जैसे कार्य करते हो उनके लिए मोती माला राजयोग का निर्माण करती है  • फंसे हुए पैसों को निकलवाने के लिए मोती माला को पूर्णिमा की रात्रि में धारण करनी चाहिये। • नौकरी में तरक्की, अच्छी नौकरी की प्राप्ति और व्यापार व्

सूर्य को जल देने से ज्योतिष का सम्बन्ध ::.

सूर्य को जल देने से ज्योतिष का सम्बन्ध ::. सूर्य को जल देना पुरानी परम्परा है, परन्तु किसी ने यह जानने का प्रयास किया की क्यूँ दिया जाता है सूर्य को जल? और क्या प्रभाव होता है इससे मानव शरीर पर? आइये आज बताते हैं इसका पुराणिक रहस्य,पूरी जानकारी के लिए कृपया अंत तक पढ़े, थोडा समय लग सकता है, परन्तु जानकारी महत्वपूर्ण है। अलग अलग रंग अलग अलग अवर्तियाँ पैदा करते हैं, अंत में इसका उल्लेख करूँगा, मानव शरीर रासायनिक तत्वों का बना है,  रंग एक रासायनिक मिश्रण है। जिस अंग में जिस प्रकार के रंग की अधिकता होती है शरीर का रंग उसी तरह का होता है, जैसे त्वचा का रंग गेहुंआ, केश का रंग काला और नेत्रों के गोलक का रंग सफेद होता है। शरीर में रंग विशेष के घटने-बढने से रोग के लक्षण प्रकट होते हैं, जैसे खून की कमी होना शरीर में लाल रंग की कमी का लक्षण है। सूर्य स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का भण्डार है| मनुष्य सूर्य के जितने अधिक सम्पर्क में रहेगा उतना ही अधिक स्वस्थ रहेगा। जो लोग अपने घर को चारों तरफ से खिडकियों से बन्द करके रखते हैं और सूर्य के प्रकाश को घर में घुसने नहीं देते वे लोग सदा रोगी बने रहते हैं। जहा

सूर्य

Sun in 7th house the nature of Spouse. The placement of the Sun in the 7th house have significant effects on the nature and characteristics of their spouse. Spouse will possess qualities such as confidence, leadership, and charisma. May be ambitious, independent, and self-assured. They may also be creative, artistic, and enjoy the limelight. However, this placement of the Sun in the 7th house also indicates a potential for ego clashes and power struggles in the relationship. As the Sun is a fiery and dominant planet, and its placement in the 7th house may indicate that the spouse may have a strong will and desire to be in control. This can sometimes lead to conflicts and challenges in the relationship. सूर्य सप्तम भाव में और जीवनसाथी का स्वभाव सप्तम भाव में सूर्य की स्थिति का जीवनसाथी के स्वभाव और विशेषताओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जीवनसाथी में आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और करिश्मा जैसे गुण होंगे। महत्वाकांक्षी, स्वतंत्र और आत्मविश्वासी हो सकते हैं। वे रचनात्मक, कलात्मक भी हो सक

संख योग

#शंख_योग  जब पंचमेश  षष्ठेश एक दूसरे से केंद्र में हो तो शंख योग कहा जाता है। शंख योग में जिस जातक का जन्म होता है वह प्रतियोगिता परीक्षाओं में अच्छा प्रदर्शन करता है छठा भाव संघर्षों का है और पांचवा बौद्धिक क्षमता का।  जब कभी भी पंचमेश और षष्ठेश परस्पर केंद्र में हो तो प्रतियोगिता के द्वारा शिक्षा प्राप्त करने का योग बनता है प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अच्छा योग है जैसे सीए आदि पंचमेश षष्ठेश यदि एक ही  ग्रह हो तो यह योग नहीं बनेगा क्योंकि एक दूसरे से केंद्र में नहीं होंगे। #शकट_योग जब चन्द्रमा और गुरु एक दूसरे से 6,8 हों तब शकट योग बनता है। दुर्भाग्य शाली, अप्रसिद्ध, साधारण जीवन व्यतीत करने वाला होता है। कष्ट में रहता है भाग्य में परिश्रम करना होता है। कोई भी ग्रह किसी से 6 या 8 में हो तो दशा अंतर्दशा में बुरे फल मिलते हैं। यह अच्छा योग नहीं है कई अच्छे योगों को भंग कर देता है। शकट का मतलब है बैलगाड़ी या जो इसे चलाता है। आज के समय मे ड्राइवर हो सकता है। जीवन में उन्नति धीरे होती है। यह योग भंग हो जाता है- ▪︎यदि चन्द्र या गुरु लग्न से केन्द्र में हों। ▪︎चन्द्रमा के साथ शुक्र हो। ▪︎मंगल

शादी

आज बात करते है अगर शादी नही हो पा रही है बार बार शादी होने में बाधा आ रही है या शादी की बात ही नही बन पा रही है तो कब तक शादी हो जाएगी और क्या करे जिससे शादी हो जाये आदि?                                                                                  कुंडली का 7वा भाव(विवाह/शादी भाव)बलवान है शुभ स्थिति में है तब शादी बिना बाधाओं के हो जाएगी,अगर यहां पाप ग्रहों का प्रभाव है शनि या राहु केतु या मंगल अष्टमेश,षष्ठेश ग्रहो का तब यहाँ ऐसी स्थिति में शादी होने में बाधाएं दिक्कत बनी रहेगी ऐसी स्थिति में समय स शादी केवल उपाय करने से हो पाएगी बाकी शादी ग्रह और योग मजबूत है तब 7वे भाव में बैठे ग्रहो और 7वे भाव स्वामी या 7वे भाव स्वामी से सम्बन्ध बना रहे ग्रहों की महादशा अन्तर्दशा आते ही शादी हो जाएगी, अब शादी वाले ग्रहो की महादशा अंतर्दशा देर से आ रही है तो देर से कुछ और जल्दी आ रही है या आ जाती है तो जल्दी शादी हो जाएगी।अब कुछ उदाहरणों से समझते है कब तक हो पाएगी शादी और देर होती जा रही है शादी होने में तो क्या करे उपाय आदि।।                                                                       

कुंडली

कुंडली में प्रथम पंचम और नवम भाव शुभ होते है इनके मालिक चाहे पापी ग्रह हो या शुभ ग्रह हमेशा शुभ फल दायी होते है। हालांकि उनकी प्लेसमेंट काफीt मायने रखती है। लग्नेश पंचमेश और भाग्येश उत्तरोत्तर अधिक शुभफलदायी होते है। तृतीय षष्ठ और एकादश भाव अशुभ होते है इस प्रकार तृतीयेश षष्ठेश और एकादशेश अशुभ होते है। तृतीय षष्ठ और एकादश उतरोतर अधिक अशुभ फलदाई होते है। द्वितीयेश और द्वादशेष साहचर्य के अनुसार शुभ  अशुभ फल देते है। अष्टमेश अशुभ फल दाई होता है लेकिन लग्नेश हो तो अशुभ फलदाई नही रहता जैसे मेष में मंगल को अष्टमेश दोष नही लगता। केंद्र यानी पहला चौथा सातवां और दशम भाव के मालिक यदि शुभ ग्रह हो तो अशुभ फल दाई और पाप ग्रह हो तो शुभ फल दाई होते है। चूँकि पहला भाव त्रिकोण भी होता है तो उस पर ये नियम लागू नही होता। राहु केतु केंद्र में किसी त्रिकोणेश के साथ हो या त्रिकोण में किसी केन्द्रेश के साथ हो तो शुभफलदायी होते है। यदि कोई ग्रह लग्न कुंडली में उच्च और नवमांश में नीच का हो तो उच्च का फल न देकर सामान्य फल देता है । इसी प्रकार लग्न में नीच और नवमांश में उच्च हो तो भी नीच का फल नही देता।

ग्रह

👉व्यक्ति किस तरह के व्यवसाय या नौकरी में अधिक सफलता प्राप्त करेगा इसका निर्धारण करने के लिए  1 , 2 , 7 ,10 , 11 , भाव में विराजमान ग्रह या इन भावो पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों से किया जाता है । 👉 जिसकी कुंडली में प्रथम ,  द्वितीय , सप्तम , नवम  , दशम एवं एकादश  भाव के स्वामी एवं बुध प्रबल रहतें हैं  , ऐसे लोग समान्यतः  स्वयं के व्यवसाय में सफल होते है । अन्यथा नौकरी करने  से  आमदनी होती है । 👉 जन्म कुंडली में सप्तमेश एवं दशमेश -  6 , 8 , 12  भाव में विराजमान हो तो स्वयं के व्यवसाय में पूर्ण सफलता प्राप्त नहीं होती है । ♦️👉 स्वयं  के व्यवसाय में सफलता मिलेगी या नहीं यह फेसबुक पर नहीं बताया जा सकता है । इसके लिए विस्तार से संपूर्ण कुंडली का विश्लेषण करवाना आवश्यक है ।  🔹🔹🔹🔹🔹

ketu

केतु : आपका पिछला जीवन पहेली या पैटर्न, कौशल, फोबिया, आदतें, तनाव और विशेषज्ञता।   केतु भूमिका : आत्मा कभी नहीं मरती यह केवल शरीर बदलती है।   केतु 1,5,9 भाव में   शारीरिक रूप से पिछले जीवन के गहरे घाव लिए हुए।   केतु 3,7,11 भाव में   पिछले जन्मों के आघात से मानसिक रूप से भय।   केतु 4,8,12 भाव में   पिछले जीवन की अनसुलझे भावनाओं को भावनात्मक रूप से वहन करना।   केतु 2,6,10 भाव में   आर्थिक रूप से अपने पिछले जीवन के दुर्भाग्य से वित्तीय असुरक्षा को ढोना।   यदि आप शारीरिक या मानसिक दोषों के साथ पैदा हुए हैं, यदि आप कठिन परिवार में पैदा हुए हैं, यदि आप अपमानजनक रिश्ते में हैं, यदि आपके बच्चे समस्याग्रस्त हैं, यदि आप बुरी किस्मत की भयानक घटनाओं में हैं, यदि आप वित्तीय तनाव की लंबी श्रृंखला में हैं...  सभी केतु के कारण निर्णय के तरीके और वर्तमान जन्म में आगे बढ़ाए जाते हैं।   केतु पिछले जन्मों की निपुणता, प्राकृतिक कौशल और प्रतिभा भी देता है, कई बार आपने कुछ लोगों को स्वाभाविक रूप से कुछ प्रतिभाओं के साथ उपहार में देखा है, यह सब केतु की प्रकृति के कारण है जो आपके पिछले जन्म से लेकर वर्तमान जन

12TH HOUSE AND WEALTH/EARNING FROM FOREIGN

12TH HOUSE AND WEALTH/EARNING FROM FOREIGN Generally 12th house is known as house of expenditures or losses, in vedic astrology 6/8/12 houses are known as malefic houses (trika bhava). It is not always losses, as sometimes your present loss might come back later in a form of gains, one goes to foreign loosing his identity and becomes an unknown person in a different country and accept all types of situations, works hard and become successful after a certain amount of time. The 12th house also gives wealth and fame in foreign when it associates with certain good yogas, the houses 7th & 9th as analysed for long journeys or foreign travels, if lords of 7&9 are well connected with 12 then there is a strong possibility for settling in foreign countries.  And if good yogas are also associated with 12th house & 4th house is strong then one can earn good through foreign sources or work in MNCs in own country.

जन्मकुंडली में प्रेत दोष होने के कुछ योग यदि

जन्मकुंडली में प्रेत दोष होने के कुछ योग यदि  जन्मकुंडली में ऐसा कोई योग यदि बनता है तथा उन पर शुभ ग्रहों की दृष्टि न हो तो ब्लैक मैजिक या प्रेत दोष जातक पर हो सकता है सम्भवता- 1.नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो। 2. पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो। 3. जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है। 4. षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है। 5. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो। 6. लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो। 7. निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय। 8. निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बाहरहवें भाव में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय। 9. चार राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो। 10. एकादश भाव में मंगल हो

विपरित राजयोग

#विपरीत_राजयोग 6 8 12 के स्वामी अच्छे नहीं माने जाते हैं। योगों में कुछ अच्छाई भी है या बुराई भी है। अगर 6 8 12 के स्वामी 6 8 12 में बैठ जाए तो राजयोग बनाते हैं इन्हें विपरीत राजयोग कहते हैं।  यह योग छठे आठवें और बारहवें भावों के स्वामियों के एक दूसरे की राशियों में एक साथ या  भाव परिवर्तन के साथ बैठने पर बनता है। इसके परिणास्वरूप जातक व्यक्तिगत वस्तुओं को संभालता है। नौकरी करने में प्रवृत्त श्रेष्ठ कार्य करने वाला दीर्घायु लाभ निपुण ख्याति प्राप्तहोता है।  अशुभ भावों के स्वामी यदि एक साथ हुो या एक दूसरे को देखे या एक दूसरे की राशियों में बैठे और साथ ही साथ किसी अन्य ग्रह से युत या दृष्ट हो तो जातक जीवन में उन्नति करता है।राजा के समान बनता है और विशाल धन-संपत्ति का सामी होता है ऐसा योग है जो पहले पतन  फिर उत्थान देता हैl #हर्ष_योग यदि 6 8 12 भाव के स्वामी छठे भाव में बैठ जाए तो हर्ष नामक विपरीत राजयोग बनता है। इसमें जातक सुखी और उत्तम भाग्य वाला होता है शरीर सुडौल होता है। पाप कर्मों से दूर रहेगा, शत्रुओं पर विजयी होगा। उच्च पदाधिकारियों की संगति में रहता है। जातक धनी वैभवशाली, प्रसिद्

आज हम बात करेंगे बारवे भाव की । अब पहले यह जान ले बारवे भाव सम्बंदित काम ।

आज हम बात करेंगे बारवे भाव की । अब पहले यह जान ले बारवे भाव सम्बंदित काम ।  1 खर्च का भाव  2 कोर्ट कचहरी का भाव  3 बीमारी का भाव । 4बीमारी से मुक्ति का भाव । 5, शैया सुख का भाव । 6, दोनो पैरो का भाव । 7,औरत की दायीं आँख भाव। 8,पुरुष की भायी आँख का भाव। 9,आपके पिता की संपत्ति का भाव 10, मुक्ति का भाव। 11,मोक्ष का भाव 12,नीद काम आना या टूट जाने नींद मे बड़बड़ाना का भाव , 13, मन मे क्या चल रहा उसका भाव । 14,पृथकता का भाव । 15, शत्रु का आपके जीवन मे कितना प्रभाव होगा उसका भाव। 16, चुनाव के दोहरान जनता से सहयोग मिलेगा या नही उसका भाव । 17, शादी टूटने का भाव । 18, शरीर का कोई अंग भंग हो जाना के भाव  19,आपके त्याग का भाव 20,विदेश जाने और वहाँ बसने का भाव। 21, क्रोध का भाव । यह हुए भाव सम्बंदित कार्ये ।अब बारवे भाव को खर्च का भाव कहते है और पृथकता का भाव माना गया । क्यों कियुकि 12 भाव मोक्ष है सम्पूर्ण जीवन जीने के बाद इंसान पूर्ण जन्म लेगा या मोक्ष लेगा 12 भाव बताता है । जैसे  भाव  का स्वामी कुन्डली मे जिस भी भाव मे बैठेगा उस रिश्ते ओर अंग से पृथकता देगा ओर 12 भाव मे जो ग्रेह बैठेंगें जातक उस ग

सूर्य देव

🌺🌺सूर्य देव का मीन राशि में गोचर 2023🌺🌺 🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄🌄 जगत की आत्मा तथा ग्रहों के राजा सूर्य देव दिनांक 15 मार्च 2023 को गुरुदेव की साधारण जलतत्वीय राशि मीन राशि मे प्रवेश करेंगे। सूर्य देव के प्रवेश के साथ ही मीन राशि में सूर्य गुरु की युति का निर्माण होगा । जिसे एक आध्यत्मिक और शिक्षक युति के रुप मे देखा जाता हैं। यहाँ पर सूर्य देव क्रमश: तीन नक्षत्रों को पार करेंगे। पूर्वाभाद्रपद उत्तरा भाद्रपद और रेवती । पिता सरकार राजा उच्च अधिकारी सहनशक्ति जीवन शक्ति मान सम्मान प्रतिष्ठा नेतृत्व करने की क्षमता हड़डी हृदय सूर्य के कारक है। यदि सूर्य देव कुंडली में शुभ अवस्था में है तो मान सम्मान प्रतिष्ठा सरकारी लाभ पाने में कोई सघर्ष नही करना पड़ता आसानी से सब प्राप्त हो जाता है। इसके विपरीत यदि सूर्य देव कमजोर अवस्था मे है तो जातक को मान सम्मस प्रतिष्ठा और काम का श्रेय पाने के लिये जबरदस्त संघर्ष करना पड़ता है। मीन राशि भचक् की अन्तिम राशि है कालपुरुष की कुंडली मे बारहवे भाव को प्रदर्शित करती है । गुरु देव की राशि होने से आध्यत्मिक पवित्र व्यय अलगाव मोक्ष को प्रदर्शित करती है।

नींद न आने के ग्रह

*नींद ना आने  की समस्या  (अनिद्रा )- ज्योतिषीय कारण व उपाय*   *SLEEP   PROBLEM  ( INSOMNIA ) -  ASTROLOGICAL   REASONS  AND  REMEIDIES*  == *आपके पास सोने का मौका हो और आप फिर भी न सो पा रहे हों। इसी स्थिति को इंसोम्निया/  INSOMNIA  या अनिद्रा कहा जाता है।* ==  वर्तमान समय में  विश्व के  लाखो लोगो  में  एक बड़ी समस्या व्यक्तिगत जीवन में देखी जाती है और वह है "नींद न आना या अनिद्रा...  *नींद न आने के कई कारण होते हैं जिनमें  मनोवैज्ञानिक परिस्तिथियाँ ,   जीवन की उलझनों व परेशानियों से लेकर कई चिकित्सकीय कारण भी होते हैं। किंतु कई व्यक्तियों को इन कारणों के अलावा भी  नींद न आने / अनिद्रा की शिकायत रहती है।* ==ANAND MAHESHWARI –ASTRO VASTU WHATSAPP - Wa.me/±919825262043 JOIN OUR GROUP ON FACE BOOK (आपके सभी दोस्तों को इस ग्रुप में जोड़े ) https://www.facebook.com/groups/927455083975346/==      == *ज्योतिष का सेहत से गहरा नाता है. जब ग्रहों की दशा बदलती है तो उसका मनुष्य पर भी पड़ता है. ग्रह जब अशुभ होते हैं तो व्यक्ति को रोग भी प्रदान करते हैं |* == अनिद्रा कभी भी अकेले नहीं आती है।  ब

महाधनलक्ष्मी योगा ।

ओम शान्ति .महाधनलक्ष्मी योगा । जब भी कुन्डली मे चंद्र मंगल जब कुन्डली मे एक साथ हो तो महाधनलक्ष्मी योग बनता है ।  जहाँ भी जिस भाव में यह योग बनता इन्सान को उसी भाव से धन प्राप्त होता है । मगर यह धन अछे तरीके से आएगा या गलत यह इंसान पर निर्भर करता है । क्योंकि इस योग मे व्यक्ति लालाची भी बन जाता है ।  जातक पैसा बहुत कमाता है ।धनी होता है । सुख भी भोगता है । मगर पैसा कैसे कमाएगा वो खुद पर निर्भर है । जातक निडर साहसी होता है । अब यह योग किस राशि मे बनगे ओर कौनसे लग्न मे बनेगा । उसी हिसाब से इसका फल भी होगा । ओर कितना मजबूत योग इस बात पर भी सबको अलग अलग तरह का फल देता । जातक मे जलन की भावना बहुत होती है जिधि किस्म का भी होता है । जिस बात पर अड़ जाये । । जहा यह योग महाधनलक्ष्मी योग बनाता है  वही जातक कर अन्दर धन लालसा को बड़ा देता है ।। अगर सूर्य और मंगल साथ हो तो यह जलन भावना देता है मगर जात्ताक के अन्दर साथ साथ धन मान प्रतिष्ठा के लिए लालसा पैदा करता है,  चन्दर पर मंगल की दृष्टि भी जात्ताक को लालची बनाती है

कुंभ लग्न

कुंभ लग्न सूर्य : सप्तमेश सूर्य मारक प्रभाव लिए होता है, लेकिन अपनी दशा में मृत्यु नहीं देता है। सूर्य की दशा में स्वास्थ्य हानि के साथ दैनिक रोजगार में वृद्धि होती है। सूर्य शनि तृतीय भावगत हो, तो शुभ होता है। चंद्रमा : रोगेश चंद्रमा अपनी दशा में रोग और ऋणों से ग्रस्त रखता है। आय की तुलना में व्यय की अधिकता रहती है। कुंभ लग्न के जातक प्रायः चंद्रमा की दशा में ऋण लेते हैं। मंगल : पराक्रमेश और दशमेश मंगल की दशा को सर्वदा शुभ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि पाप ग्रह तभी शुभ फल करते हैं, जबकि वे केंद्रों के स्वामी हों। जैसे कर्क लग्न में मंगल दशम का स्वामी होने से प्रबल कारक हो जाता है। जबकि सप्तमेश होने के बावजूद कुंभ लग्न में यह स्थिति नहीं देखी जाती है। मंगल नितांत शुभ फल ही दे। कुंभ लग्न में मंगल के भाव और राशिगत स्थिति के अनुसार निर्णय करना चाहिए। बृहस्पति : द्वितीयेश और लाभेश बृहस्पति की दशा में मूलतः अशुभ फलों की प्राप्ति होती है। बृहस्पति की दशा प्रतिकूल समय का संकेत करती है। बृहस्पति में बृहस्पति के अंतर के बाद किंचित सुधार आता है। शनि : हालांकि शनि लग्न का स्वामी है, लेकिन साथ ही द

भद्र_योग

#भद्र_योग यदि बुध मिथुन या कन्या राशि में और लग्न व चन्द्रमा से केंद्र में स्थित हो तो भद्र योग बनता है। यह योग बुध से बनता है। जब कुंडली में बुध केंद्र में स्वराशि मिथुन व कन्या उच्च राशि में स्थित हों तो भद्र योग बनता है।  ऐसे में जातक की किस्मत अचानक बदल जाती है। कहा जाता है कि जिसकी कुंडली में भद्र योग बनता है वह बुद्धि, चतुराई और वाणी का धनी होता है. ऐसे लोग कारोबार में भी सफलता अर्जित करते हैं। ऐसा जातक सफल वक्ता भी बन सकता है। ऐसा जातक कार्य कौशल, लेखन, गणित, कारोबार और सलाहकर के क्षेत्र में सफल रहता है। उसमें विशलेषण करने की गजब क्षमता रहती है। उसकी तार्किक शक्ति भी अद्भुत रहती है। उपरोक्त गुण होने से वह सफल जीवन यापन करता है। बुद्धि के कारक बुद्ध इस योग का निर्माण करते हैं। यह जातक को बुद्धिमान तो बनाते हैं साथ ही इनकी संप्रेषण कला भी कमाल की होती है। रचनात्मक कार्य में इनकी रूचि अधिक होती है अच्छे वक्ता लेखक हो सकते हैं। इनके व्यवहार में ही भद्रता झलकती है जिससे सब को अपना मुरीद बना लेते हैं।  यह योग जातक को बुद्धिमान बनाता है। ज्योतिष वक्ता हो सकते हैं। भद्र पुरुष की तरह व्य

कर्तरी_योग

#कर्तरी_योग शुभ कर्तरी योग पाप कर्तरी योग #शुभ_कर्तरी_योग-  कुंडली के बारह भावों में जब किसी भी भाव के दोनों ओर अर्थात किसी भी भाव के आगे और पीछे वाले भाव में यदि शुभ ग्रह स्थित हो तो इसे शुभ कर्तरी योग कहते हैं। इसमें भाव दो शुभ ग्रहों के बीच में आ जाता है। जिससे उस भाव की शुभता बढ़ जाती है। इसलिये इसे शुभ कर्तरी योग कहते हैं। इस योग को भाव की वृद्धि करने वाला माना गया है। शुभ कर्तरी में जब दो ग्रह आगे पीछे बैठेंगे तो वह अच्छा योग है ऐसे योग में व्यक्ति को ऐसा साथ मिलता है जिससे उसकी प्रतिभा और निखर जाती है यह योग बहुत अच्छा माना गया है। यह योग और अच्छा हो जाएगा अगर वह स्वयं भी बलि है और साथ भी अच्छों का मिल रहा है। यदि ग्रह कमजोर भी है लेकिन साथ अच्छों का मिल रहा है तो वह आपको ऊपर उठा देंगे शुभ ग्रहों के साथ की वजह से ग्रहया भाव की कमजोरी दूर हो जाती है। #पाप_कर्तरी_योग जब किसी ग्रह या भाव से दूसरे भाव और बारहवें भाव में शनि, सूर्य, मंगल, राहु अथवा केतु हो तो कुंडली में पाप कर्तरी योग बनता है यह योग व्यक्ति के जीवन में कष्टकारी होता है। जिस भाव में पाप कर्तरी योग बनता है उस भाव में श

महाभाग्य_योग

#महाभाग्य_योग यह बहुत अच्छा योग है। यह योग बनता है-  ▪यदि पुरुष का जन्म दिन में सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच का है और लग्न चंद्रमा सूर्य विषम राशियों में है तो महाभाग्य योग बनता है यह लोग बहुत भाग्यशाली संतान पत्नी धन कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं। ▪यदि स्त्री का जन्म रात्रि का सूर्यास्त से सूर्योदय के मध्य तथा लग्न सूर्य चंद्रमा सम राशि में होने चाहिए तब कुंडली में महाभाग्य योग बनेगा।  ▪इस योग में जनता से प्रचुर ख्याति प्राप्त होती है जातक दानशील,  प्रतिष्ठित, राजा या राजा के समान होगा तथा 80 वर्षों तक जीवित रहेगा। उसका आचरण निर्मल होता है। इस योग में उत्पन्न स्त्री अतिभाग्यवान उत्तम गुणों वाली तथा मधुर व्यवहार वाली होती है।

अधि योग

अधि योग यदि शुभ ग्रह लग्न से छठे सातवें और आठवें भाव में हो तो लग्नाधि योग बनता है।  जब लग्न से 7 और 8 में शुभ ग्रह हो और अशुभ ग्रह से दृष्ट न हो अथवा अस्त न हो अथवा अशुभ ग्रह से युक्त न हो तो लग्नाधि योग बनता है जातक महान व्यक्ति शास्त्रों का ज्ञाता तथा सुखी होता है यहां पर महर्षि पराशर ने छठे भाव को शामिल नहीं किया है जबकि लग्नाधि में छठे भाव को शामिल किया गया है।  यदि शुभ ग्रहों की स्थिति चंद्रमा से छठे सातवें तथा आठ में हो तो चंद्राधि योग बनता है। यदि शुभ ग्रह है तो शुभाधि योग यदि पाप ग्रह है तो पापाधि योग कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनेक ग्रंथों में यह पढ़ा गया है कि यदि शुभ ग्रह छठे आठवें और बारहवें भाव में स्थित हो तो वह शुभ फल नहीं देते किंतु यहां इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि जब लग्न में शुभ ग्रह छठे सातवें तथा आठवें में स्थित होंगे तो एक बात तो निर्विवाद सिद्ध होती है कि लग्न पर सप्तम स्थान में बैठे हुए शुभ है कि शुभ दृष्टि द्वारा लग्न को बल तथा लाभ पहुंचेगा।  बात करें उन ग्रहों की जो कि छठे और आठवें भाव में स्थित है तो छठवें में स्थित ग्रह की लग्न से द्वादश स्थान पर

चन्द्र देवता

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              -: श्री नवग्रह परिचय :-                    "२. चन्द्र देवता" अन्य नाम :- सोम, रोहिणीनाथ, अत्रिपुत्र, अनुसूयानंदन, शशि, महेश्वरप्रिय || चंद्र संबंध :- चन्द्र ग्रह एवं ब्रह्मा का अवतारण, निवासस्थान :- चंद्र लोक, चंद्रमंत्र :- ॐ सोम सोमय नमः, अस्त्र :- रस्सी और अमृत पात्र, यंत्र :- चन्द्र यंत्र, जड़ :- खिरनी, रत्न :- मोती, रंग :- सफ़ेद, जीवनसाथी :- रोहिणी(मुख्य पत्नी), रेवती , कृतिका, मृगशिरा, आद्रा, पुनर्वसु, सुन्निता, पुष्य अश्व्लेशा, मेघा, स्वाति, चित्रा, फाल्गुनी, हस्ता, राधा, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मुला, अषाढ़, अभिजीत, श्रावण, सर्विष्ठ, सताभिषक, प्रोष्ठपदस, अश्वयुज और भरणी || || माता-पिता || महर्षि अत्रि (पिता) देवी अनुसूया (माता) भाई-बहन :- दत्तात्रेय, दुर्वासा || संतान :- वर्चस , बुध और अभिमन्यु (सुभद्रा और चंद्र के पुत्र) || सवारी :- मृग का रथ || वैदिक :- चन्द्र देव एक हिन्दू देवता हैं,, जो चन्द्रमा गृह के देवता मने जाते है। यह रात्रि के समय रौशनी करने, रात्रि, पौधों और वनस्पति से सम्बंधित मने जाते हैं ।। ब्रह्मा का चन्द्र रूप लेने का मूल उद्द

मंगल

मंगल जन्म कुंडली में ऊर्जा शाररिक शक्ति दृढ़ता इच्छाशक्ति छोटे भाई के कारक है। अगर जन्मकुंडली मे मंगल मजबूत अवस्था मे हो तो व्यक्ति साहसी स्पष्टवादी और आवेगी होते हैं। प्रत्येक कार्य मे जल्दबाजी ऊर्जा दिखेगी। इनके विपरीत कमजोर मंगल साह स की कमी भयभीत हो जाना । आत्मविश्वास की कमी होती । रक्त संबंधी बीमारी का होना भी कमजोर मंगल का प्रभा व है। जातकों की कुंडली मे मंगल देवकी दशा और स्थिति के अनुसार ही सटीक प्रभावो के बारे मे जाना जा सकता है। आइये जाने कि समस्त राशियो पर इस महत्वपूर्ण  गोचर का क्या प्रभाव होगा?

सूर्य

अन्य नाम :- सूर्य, वीर, नारायण, तपेंद्र, भास्कर, दिवाकर, हिरण्यगर्भ, खगेश, मित्र, ओमकार, सूरज, दिनेश, आदित्य, दिनकर, रवि, भानु, प्रभाकर, संध्यापति, छांयापति, कर्णपिता , आदि ।। सूर्य देव कारक एवं देवता हैं :-  प्रकाश, स्वास्थ्य, वंश, ग्रह, तपस्या, तप, पवित्रता, विजय, कर्म, जाप, साधना, यज्ञ,वेद, युद्ध, अस्त्र-शास्त्र, आत्मा, समय, काल, दिग्पाल, दिशा, सुख, ज्ञान, ज्योति, आराधना, सुबह, शाम, शांति, रंग, पुण्य, शक्ति, ऊर्जा, धर्म, गति, दीर्घायु, ऋतुएँ, मुक्ति के अधिष्ठात्र देवता, साक्षात सूर्य स्वरूप,परब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वदिशात्मक, निरंजन निरकार परमात्मा ।।                                  -: ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव :-                            भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका, उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है।                सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, लकड़ी, मिर्च, घास, हिरन, शेर, ऊन, स्वर्ण, आभूषण, तांबा, आदि का भी कारक है। मन्दि

धन देने वाले योग।।

धन देने वाले योग।। ■■■■■■■■■■ 1】अचानक धन लाभ(3,6,5,10,11)जब सम्बन्ध बने तो अचानक धन लाभ होगा। 2】राहु जब(3,6,10,11)धन लाभ देता है और गुरु कारक ग्रह  पोजीशन अच्छा होतो धन देता है। A) 3rd भाव ◆Short cut के माध्यम से धन लाभ देता है। B) राहु ग्रह -सपने दिखता है जो अचानक अपने फल देता है। C) 6th भाव -- प्लान बनाता है, हार्ड वर्क करता है D) 10th भाव -सम्मान देता है, कर्म में विश्वास रखता है E) 11th भाव- कर्म का फल देता है लाभ स्थान है लाभ देता है 💐 वे 7 नक्षत्र जिसमे राहु बना देता है धन देता है। 【राहु जब इन 7 नक्षत्रों में होतो अकूत धन देता है】    ■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■ 💐 विशाखा नक्षत्र★ इसके स्वामी गुरु होता है जातक अकेले बैठ कर प्लान कार्रत है, जो सब से अलग करता है और सफल होता है. 💐रोहाणी नक्षत्र★ये विषभ राशि मे और रोहाणी नक्षत्र (शुक+चंद्र)luxry life और धन देता है। 💐भरनी नक्षत्र★ भरनी के स्वामी शुक और राशि के स्वामी मंगल (शुक्र+मंगल) अधिक ऊर्जा मेहनती बनाता है जो धन के पीछे दीवाना हो जाता है और सफल होता है। 💐हस्त नक्षत्र★राशि स्वामी शुक और नक्षत्र स्वामी चंद्र जो (शुक्र+चंद) लक्ष्मी योग

समृद्धि, सुख और शांति के लिए*

*धन, समृद्धि, सुख और शांति के लिए*  ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ *हिंदू धर्म में कुछ चीजें ऐसी मानी गई हैं जिन्हें घर में जरूर रखना चाहिए। कहा जाता है जहां भी ये मंगल प्रतीक रखें जाते हैं। उस घर में हमेशा बरकत बनी रहती है।  साथ ही धन, समृद्धि और सुख की गंगा बहने लगती है। यही कारण है कि इन चीजों को पूजा की जगह रखने का अधिक महत्व  है आइए जानते हैं कौन सी हैं वो चीजें...* *इन 5 चीजों को घर में रखने से होगी धन, समृद्धि,सुख और शांति* *कलश* ~~~~~~~ *कलश सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है  पूजन के स्थान पर रोली,  कुम -कुम से अष्टदल कमल की आकृति बनाकर उस पर यह मंगल कलश रखा जाता है । इससे घर में समृद्धि रहती है ।* *स्वस्तिक*  ~~~~~~~~~ *स्वस्तिक को शक्ति, सौभाग्य, समृद्धि और मंगल का प्रतीक माना जाता है ।हर काम में इसको बनाया जाता है ।इसलिए घर के पूजन स्थल पर धातु का बना स्वस्तिक जरूर रखना चाहिए ।* *शंख*  ~~~~~~~ *शंख समुद्र  मंथन के समय प्राप्त चौदह अनमोल रत्नों में से एक है । लक्ष्मी साथ उत्पन्न होने के कारण यह उनको प्रिय है ।इसलिए घर के पूजन स्थल पर इसे जरूर रखना चाहिए ।* *दीपक और धूपदान* ~~~~~~~~~~~